भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का दृष्टिकोण: विकास, विज्ञान और वैश्विक बढ़त
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम आपदा प्रबंधन, कृषि, गवर्नेंस और विज्ञान में अहम भूमिका निभा रहा है; नीति 2023 से निजी भागीदारी और विकास को बढ़ावा।
अंतरिक्ष नीति 2023 और IN-SPACe के तहत निजी भागीदारी, लागत-दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था तेज़ी से विस्तार कर रही है।
NAVIC, NDEM और भू-स्थानिक शासन से सार्वजनिक सेवाओं में पारदर्शिता बढ़ी, वैज्ञानिक अनुसंधान और रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूती मिली।
नागपुर/ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम आज केवल उपग्रह प्रक्षेपण या वैज्ञानिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह राष्ट्रीय विकास, आपदा प्रबंधन, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल गवर्नेंस का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है। अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भारत ने न केवल अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत किया है, बल्कि सामाजिक समावेशन और लोक कल्याण को भी नई गति दी है।
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की भूमिका निर्णायक रही है। इसरो द्वारा विकसित राष्ट्रीय आपातकालीन प्रबंधन डेटाबेस (NDEM 5.0), गृह मंत्रालय के एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया नियंत्रण कक्ष (ICR-ER) का अहम हिस्सा है। यह प्रणाली भूकंप, बाढ़, चक्रवात और अन्य आपदाओं के दौरान त्वरित निर्णय लेने में केंद्र और राज्य एजेंसियों की मदद करती है। उपग्रह डेटा का उपयोग जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्रक्रियाओं और जोखिम आकलन में भी किया जा रहा है।
कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ने फसल उत्पादन पूर्वानुमान, फसल निगरानी, कृषि-मौसम सलाह, फसल बीमा योजनाओं और कृषि-डीएसएस जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। इससे किसानों को समय पर जानकारी मिलती है और नीतिगत फैसलों को वैज्ञानिक आधार प्राप्त होता है। इसके साथ ही, टेलीमेडिसिन, टेली-एजुकेशन, ई-गवर्नेंस और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी में भी अंतरिक्ष कार्यक्रम का योगदान उल्लेखनीय है। भारत की स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली NAVIC, सटीक पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग सेवाएं प्रदान कर रही है।
वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के अंतरिक्ष मिशनों ने ज्ञान के आधार को मौलिक रूप से मजबूत किया है। लागत-प्रभावी और स्वदेशी समाधानों के जरिए संचालित ये मिशन विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को उन्नत प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं। इससे प्रतिभाओं का पोषण होता है और एक सशक्त वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होता है। भारत की उच्च मिशन सफलता दर और वैश्विक स्तर पर बढ़ती मांग ने देश को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित किया है।
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 के तहत अंतरिक्ष इकोसिस्टम में संस्थागत सामंजस्य को स्पष्ट किया गया है। निजी क्षेत्र की जिम्मेदार भागीदारी, स्पष्ट नियामक ढांचा और आईएसआरओ का मार्गदर्शन इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है। वित्तीय चुनौतियां सीमित हैं क्योंकि भारत का कार्यक्रम अत्यधिक लागत-दक्ष है और निजी क्षेत्र के लिए नए फंडिंग चैनल उपलब्ध हो रहे हैं। तकनीकी अंतराल भी निरंतर अनुसंधान एवं विकास और स्वदेशी विनिर्माण से तेजी से कम हो रहे हैं।
IN-SPACe ने भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय विज़न तैयार किया है, जिसका लक्ष्य 44 बिलियन डॉलर की बाजार क्षमता, जिसमें 11 बिलियन डॉलर का निर्यात शामिल है को साकार करना है। मांग सृजन, पृथ्वी अवलोकन, संचार और नेविगेशन प्लेटफॉर्म, अनुसंधान एवं विकास, प्रतिभा निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में क्षमताओं को उत्प्रेरित किया जा रहा है। भारत को विज्ञान और अंतरिक्ष सहयोग में एक तटस्थ, सक्षम और विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखा जा रहा है। सहयोगी मिशन जैसे NISAR और प्रस्तावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) इस दिशा में महत्वपूर्ण मंच प्रदान करेंगे।
भू-स्थानिक शासन इस यात्रा का अगला बड़ा कदम है। जीआईएस मानचित्र और उपग्रह आधारित पृथ्वी अवलोकन से सार्वजनिक सेवाओं में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ रही है। 22 अगस्त 2025 को आयोजित राष्ट्रीय बैठक 2025 ने मंत्रालयों की डेटा आवश्यकताओं की पहचान कर बेहतर निर्णय-निर्माण को गति दी। समावेशिता भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की मूल भावना है,डेटा और सेवाएं किसानों, आपदा प्रबंधकों और जमीनी योजनाकारों तक सुलभ हैं। एंट्रिक्स और NSIL जैसी संस्थाएं व्यावसायिक मॉडल के साथ लोक कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास को एक साथ आगे बढ़ा रही हैं।